इस सम्बन्धमें अभियोजन पक्ष की ओर से प्रस्तुत न्यायदृष्टान्त उत्तर प्रदेश राज्य बनाम डॉ. जी. के. घोष (पूर्वोक्त) में प्रतिपादित सिद्धान्त अनुसार यही कहा जा सकता है कि ज्योंही अभियुक्त हुकमसिंह ने अवैध परितोषण के रूप में अभियोगी छैलसिंह से दो हजार रूपये प्राप्त किये, उसने उसके बदले में उसके भाई देवीसिंह के पक्ष में म्यूटशन भरना शुरू किया।
2.
इसी प्रकार आन्ध्रप्रदेश राज्य विरूद्ध कोम्माराजू गोपाल कृष्ण आपराधिक प्रकरण सं0 76 / 2005 राज्य विरूद्ध चन्दाराम-43-मूर्ति-2001 एस. सी. सी. (क्रिमिनल) 1481 वाले मामला में भी भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 101 व 106 के आधार पर यह कहा गया है कि यह सिद्ध करने का भार तो लोक सेवक (अभियुक्त) पर है कि उसके द्वारा प्राप्त की गई राशि अवैध परितोषण की राशि नहीं है।
3.
उपर्युक्त चारों रसीदों के सम्बन्ध में अनुसन्धानकर्ता फाऊलाल ने अभियुक्त द्वारा दिए स्पष्टीकरण की आड़ में कोई अनुसन्धान ही नहीं किया है और अभियुक्त चन्दाराम ने टेªप के दौरान यह स्पष्टीकरण दे दिया कि उसने विवादित राशि जून माह की बकाया रसीदों पेटे प्राप्त की है, इस कारण उसके द्वारा प्रस्तुत स्पष्टीकरण युक्तियुक्त, संभाव्य एवं सत्य होने से यह नहीं कहा जा सकता कि इसके द्वारा प्राप्त धनराशि वैध पारिश्रमिक से भिन्न कोई अवैध परितोषण हो।
4.
माननीय उच्चतम न्यायालय ने उपर्युक्त न्यायदृष्टान्तों में यह कहा है कि यदि टेªप सम्बन्धी मामला में घटनाक्रम, मानवीय आचरण एवं अन्य परिस्थितियों को देखते हुये तथ्यों के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि अभियुक्त ने वैध परितोषण से भिन्न राशि प्राप्त की और इस सम्बन्ध में उसने कोई समुचित स्पष्टीकरण नहीं दिया है तो उससे बरामद हुई राशि के आधार पर उसके विरूद्ध यह उपधारणा धारित की जा सकती है कि उसने ऐसी राशि अवैध परितोषण के रूप में प्राप्त की।